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मंगलवार, 30 जनवरी 2018

आए मुश्किल......नीरज गोस्वामी

आए मुश्किल मगर जो हँसते हैं
रब उसी के तो दिल में बसते हैं

चाहतें सच कहूँ तो दलदल हैं
जो गिरे फिर ना वो उभरते हैं

उसकी आँखों की झील में देखो
रंग बिरंगे कँवल से खिलते हैं

घाव हमको मिले जो अपनों से
वो ना भरते हमेशा रिसते हैं

चाहे जितना पिला दें दूध इन्हें
नाग सब भूल कर के डसते हैं

एक दिन तय है यार जाने का
आप हर रोज काहे मरते हैं

रिश्ते नाते हैं रेत से नीरज
हम जिन्हें मुट्ठियों में कसते हैं
-नीरज गोस्वामी

8 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. भाईसाब आपने तो सीधा दिल पर लिख डाला ये शेर और आपका रिश्तों को रेत कहना एकदम सटीक लगा, जितना कसो, उतना ही फिसलते हैं। आपने बहुत सादगी से बहुत गहरी बातें कह दीं, बिना दिखावे के।

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