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मंगलवार, 30 जनवरी 2018

आए मुश्किल......नीरज गोस्वामी

आए मुश्किल मगर जो हँसते हैं
रब उसी के तो दिल में बसते हैं

चाहतें सच कहूँ तो दलदल हैं
जो गिरे फिर ना वो उभरते हैं

उसकी आँखों की झील में देखो
रंग बिरंगे कँवल से खिलते हैं

घाव हमको मिले जो अपनों से
वो ना भरते हमेशा रिसते हैं

चाहे जितना पिला दें दूध इन्हें
नाग सब भूल कर के डसते हैं

एक दिन तय है यार जाने का
आप हर रोज काहे मरते हैं

रिश्ते नाते हैं रेत से नीरज
हम जिन्हें मुट्ठियों में कसते हैं
-नीरज गोस्वामी

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

आया बसंत मनभावन....कुसुम कोठारी


आया बसंत मनभावन
हरि आओ ना। 

राधा हारी कर पुकार
हिय दहलीज पर बैठे हैं, 
निर्मोही नंद कुमार
कालिनी कूल खरी गाये
हरि आओ ना। 

फूल फूल डोलत तितलियां
कोयल गाये मधु रागिनीयां
मयूर पंखी भई उतावरी 
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।

सतरंगी मौसम सुरभित 
पात पात बसंत रंग छाय
गोप गोपियां सुध बिसराय 
सुनादो मुरली मधुर धुन आय
हरि आओ ना।

सृष्टि सजी कर श्रृंगार
कदंब डार पतंगम डोराय
धरणी भई मोहनी मन भाय
कुमदनी सेज सजाय। 
हरि आओ ना। 

-कुसुम कोठारी

गुरुवार, 25 जनवरी 2018

बसंत......दिव्या माथुर

स्वर्णिम धूप, हरा मैदान
पीली सरसों हुई जवान
चुस्त हुआ, रंगों में नहा
लो देखो वयस्क हुआ उद्यान
झील में हैं कुछ श्वेत कमल
या बादल नभ पर रहे टहल
मृदु गान से कोयल के मोहित
हैं नाच रहे मोरों के दल
यूँ पवन की छेड़ाछेड़ी से
उद्विग्न हैं कालियाँ
फूलों का पा संरक्षण 
निश्चिंत हैं कालियाँ
फूलों से चहुं ओर घिरे
भौंरे जैसे मद पान किए
ख़याल तेरा भी भंग पिए
आया बसंत को संग लिए
-दिव्या माथुर

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

बवालों की भीड़ मची है....उर्मिला सिंह ‎

बवाल  के  समन्दर  में  जिन्दगी  बवाल है
महंगी हुई सब्जी घर में बवाल है
जहां देखो वहीं मचा बवाल है
आये  दिन  हड़ताल  ने  मचाया  बवाल  है!
बच्चों को मितव्ययता की सीख दो,
कामवालियाँ पैसे बढ़ाने को मचाती बवाल हैं!
चिल्ला-चिल्ला के बच्चे मचाते  घर में बवाल हैं!
जिन्दगी झल्ला रही  है देख के बवाल
जनता की परेशानियां देखता कौन है
हर छोटी बात पर संसद में नेता मचाते बवाल हैं!
जिन्दगी का सकूँन चैन खो गया आजकल
तर्क करते  दोस्त भी झुंझला के मचाते बवाल हैं!
बढ़ गईं बीमारियाँ जब से मचा देश  में बवाल है !
उर्मिला सिंह  


रविवार, 14 जनवरी 2018

अलाव ....डॉ. इन्दिरा गुप्ता



जलता हुआ
अलाव 
जीवन का सा 
भाव ! 

कभी मद्दिम सा 
कभी ज्वलंत सा 
जलते भावों का सा 
ज्वाल ! 

चटख चटख कर 
कभी अंगारा 
तिक्त भाव कह
जाता ! 

फिर धीरे से मद्दिम 
होकर 
अंत काल बुझ 
जाता ! 
-डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍

गुरुवार, 11 जनवरी 2018

स्वामी विवेकानन्द एक युग पुरुष

स्वामी विवेकानन्द
कल जन्म दिवस पर विशेष
12 जनवरी 1863 - 4 जुलाई 1902
:::: कुछ प्रेरक प्रसंग ::::
एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के समीप आकर बोली मैं आपस शादी करना चाहती हूं। विवेकानंद बोले क्यों?मुझसे क्यों ?क्या आप जानती नहीं की मैं एक सन्यासी हूं?औरत बोली  मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजोमयी पुत्र चाहती हूं और वो वह तब ही संभव होगा। जब आप मुझसे विवाह करेंगे।

विवेकानंद बोले हमारी शादी तो संभव नहीं है, परन्तु हां एक उपाय है। औरत- क्या? विवेकानंद बोले आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं। आज से आप मेरी मां बन जाओ। आपको मेरे रूप में मेरे जैसा बेटा मिल जाएगा।औरत विवेकानंद के चरणों में गिर गयी और बोली की आप साक्षात् ईश्वर के रूप है ।इसे कहते है पुरुष और ये होता है पुरुषार्थ एक सच्चा पुरुष सच्चा मर्द वो ही होता है जो हर नारी के प्रति अपने अन्दर मातृत्व की भावना उत्पन्न कर सके।
....................
........................
एक बार स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे। अचानक, एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा। किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था। तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे। उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा, फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाए। सभी बिलकुल सटीक लगे।
ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पुछा – स्वामी जी, भला आप ये कैसे कर लेते हैं ? आपने सारे निशाने बिलकुल सटीक कैसे लगा लिए? स्वामी विवेकनन्द जी बोले असंभव कुछ नहीं है, तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ। अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए। तब तुम कभी चूकोगे नहीं। यदि तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो।
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सुबह होते  ही, एक भिखारी नरेन्द्रसिंह के घर पर भिक्षा मांगने के लिए पहुँच गया।  भिखारी ने  दरवाजा खटखटाया, नरेन्द्रसिंह बाहर आये पर उनकी जेब में देने के लिए कुछ न निकला।  वे कुछ दुखी होकर घर के अंदर गए और एक बर्तन उठाकर भिखारी को दे दिया।
भिखारी के जाने के थोड़ी देर बाद ही वहां नरेन्द्रसिंह की पत्नी आई और बर्तन न पाकर चिल्लाने लगी- “अरे! क्या कर दिया आपने चांदी का बर्तन भिखारी को दे दिया।  दौड़ो-दौड़ो और उसे वापिस लेकर आओ।”

नरेन्द्रसिंह दौड़ते हुए गए और भिखारी को रोककर कहा- “भाई मेरी पत्नी ने मुझे जानकारी दी है कि यह गिलास चांदी का है, 
कृपया इसे सस्ते में मत बेच दीजियेगा। ”
वहीँ पर खड़े नरेन्द्रसिंह के एक मित्र ने उससे पूछा- मित्र! जब आपको  पता चल गया था कि ये गिलास चांदी का है तो भी उसे 
गिलास क्यों ले जाने दिया?”

नरेन्द्रसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा- “मन को इस बात का अभ्यस्त बनाने के लिए कि वह बड़ी से बड़ी हानि में भी कभी 
दुखी और निराश न हो!”
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एक बार बनारस में स्वामी जी दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे की तभी वहां मौजूद  बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया. वे उनके नज़दीक आने लगे और डराने लगे . स्वामी जी भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे, पर बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए, और वे उन्हें दौडाने लगे. पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहा था , उसने स्वामी जी को रोका और बोला , 
” रुको ! उनका सामना करो !”

स्वामी जी तुरन्त पलटे  और बंदरों के तरफ बढ़ने लगे , ऐसा करते ही सभी बन्दर भाग गए . इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी – ” यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो तो उससे भागो मत , 
पलटो और सामना करो.”
........................
एक अँधा व्यक्ति रोज शाम को सड़क के किनारे खड़े होकर भीख 
माँगा करता था। जो थोड़े-बहुत पैसे मिल जाते उन्हीं से अपनी 
गुजर-बसर किया करता था।  एक शाम वहां से एक बहुत 
बड़े रईस गुजर रहे थे।  उन्होंने उस अंधे को देखा और उन्हें 
अंधे की फटेहाल होने पर बहुत दया आई और उन्होंने 
सौ रूपये का नोट उसके हाथ में रखते हुए आगे की राह ली।

उस अंधे आदमी ने नोट को टटोलकर देखा और समझा कि किसी आदमी ने उसके साथ ठिठोली भरा मजाक किया है क्योंकि उसने 
सोचा कि अब तक उसे सिर्फ 5 रूपये तक के ही नोट मिला करते थे 
जो कि हाथ में पकड़ने पर सौ की नोट की अपेक्षा वह 
बहुत छोटा लगता था और उसे लगा कि किसी ने सिर्फ कागज़ का टुकड़ा उसके हाथ में थमा दिया है और उसने नोट को खिन्न मन 
से कागज़ समझकर जमीन पर फेंक दिया।

एक सज्जन पुरुष जो वहीँ खड़े ये दृश्य देख रहे थे, उन्होंने नोट को उठाया और अंधे व्यक्ति को देते हुए कहा- “यह सौ रूपये का नोट है!” तब वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसने अपनी आवश्यकताएं पूरी कीं।
:::: संकलित ::::



शनिवार, 6 जनवरी 2018

हाइकु - मुक्तक....विभा रानी श्रीवास्तव


जपानी विधा में लिखी गई 
17 अक्षर और 3 पंक्तियों की 
व्यापक अर्थ लिए कविता को ही 
हम चार पंक्तियों में एक भाव पर 
चार हाइकु लिखें तो बनेगा।

1
सूखे ना स्वेद / अपहृत बरखा / रोता भदई
देख भू चौंकी / खाली बूँदें-बुगची / नभ मुदई
व्याकुल कंठ / भरे नयन सरि / चिंता में दीन
भादो है छली / घाऊघप बादल / द्वि निरदई

अपहृत = अपहरण हो गया 
घाऊघप = गुप्त रूप से किसी का धन हरण करने वाला 

2

लोभ प्रबल / भ्रमति है मस्तके / लब्धा का साया
ताने वितान / कष्टों का आवरण / नैराश्य लाया 
डरे वियोगी / ईर्ष्या में क्रोध संग / वितृप्त मनु
काया से माया / पीर से नीर बहे / बबाल छाया।

-विभा रानी श्रीवास्तव

सोमवार, 1 जनवरी 2018

क्षणिकाएँ.....सुखमंगल सिंह

नववर्ष की दिली शुभकामनाएँ

"स्पेन"
    टमाटर की स्पेन में खेलते हैं होली 
   जन-जन खुशहाली की बोलते बोली।
   लाखों टन होता टमाटर बरबाद
   अट्ठाईस अगस्त को मनाते त्यौहार।।

"रावण"
    धरा-गगन व राहू-केतु, शनि जिसके रहा अधीन।
    इन्द्र जाल व तंत्र-मन्त्र सम्मोहन था पराधीन।।
    अस्त्र-शस्त्र औ' विमान माया थे उसके अधीन।
    फिर भी शाप से शापित वह जबकि रहा कुलीन।।

 "पी रहा"
     विश्व को मैं समेटे जी रहा, 
     चीथड़े ग़रीबी के सी रहा।
     तन-वदन है कर रहा मनमानियां
     ख़ुशनुमा मौसम है थोड़ा पी रहा।।

 "प्रकृति "
     जीने की कला प्रकृति हमें सिखाती।
     जीवन के आंगन में है बिठाती।। 
     भू पर नीचे जल बरसाती।
     चार युगों का सफर कराती।।
    ऋषियों के संसार बसाती।
    धरा मयंक गगन में सजाती।।

जीवन काल का मरम -सत्य 
    सुबह-सुबह हमें बताती।
   गौरव गाथा हमें पढ़ाने,
    भोर में ही हमें जगाती।

चलने वाले 
चलने वाले चल देते हैं 
    चलकर भी कुछ दे देते हैं। 
    जीवन का वह राज-साज 
    जिसे करते हैं लोग याद |
-सुखमंगल सिंह