बवाल के समन्दर में जिन्दगी बवाल है
महंगी हुई सब्जी घर में बवाल है
जहां देखो वहीं मचा बवाल है
आये दिन हड़ताल ने मचाया बवाल है!
बच्चों को मितव्ययता की सीख दो,
कामवालियाँ पैसे बढ़ाने को मचाती बवाल हैं!
चिल्ला-चिल्ला के बच्चे मचाते घर में बवाल हैं!
जिन्दगी झल्ला रही है देख के बवाल
जनता की परेशानियां देखता कौन है
हर छोटी बात पर संसद में नेता मचाते बवाल हैं!
जिन्दगी का सकूँन चैन खो गया आजकल
तर्क करते दोस्त भी झुंझला के मचाते बवाल हैं!
बढ़ गईं बीमारियाँ जब से मचा देश में बवाल है !
उर्मिला सिंह
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार २२जनवरी २०१८ के विशेषांक के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
लाज़वाब रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
वाह!!लाजवाब!!
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