आया बसंत मनभावन
हरि आओ ना।
राधा हारी कर पुकार
हिय दहलीज पर बैठे हैं,
निर्मोही नंद कुमार
कालिनी कूल खरी गाये
हरि आओ ना।
फूल फूल डोलत तितलियां
कोयल गाये मधु रागिनीयां
मयूर पंखी भई उतावरी
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।
सतरंगी मौसम सुरभित
पात पात बसंत रंग छाय
गोप गोपियां सुध बिसराय
सुनादो मुरली मधुर धुन आय
हरि आओ ना।
सृष्टि सजी कर श्रृंगार
कदंब डार पतंगम डोराय
धरणी भई मोहनी मन भाय
कुमदनी सेज सजाय।
हरि आओ ना।
-कुसुम कोठारी
जवाब देंहटाएंसुंदर परिकल्पना कुसुम जी.
ऋतु हो वसंत और कान्हा का संग हो.
प्रेम रस की धार हो तो पुलकित हर अंग हो.
बहुत सा आभार।
हटाएंआपकी पंक्तियाँ बहुत सुंदर है।
बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमन को भा गई
आभार नीतू जी आपका साथ हमेशा मिलता रहा है। सदा स्नेह बनाऐ रखें।
हटाएंबासंती रंगों से साराबोर अनुग्रह करती..
हटाएंबहुत सुंदर रचना
सादर आभार।
हटाएंवाह!!सुंंदर!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
हटाएंहरि आओ ना ...
जवाब देंहटाएंबसंत आ गाय ... ऋतुराज खिल उठा ... तितलियों की आहट है ... प्रिय आओ ना ... हरि आओ ना ..
मादुर्य लिए सुंदर शब्द ...
जी सादर आभार ।
हटाएंसुंदर शब्दों के साथ उत्साहित करती प्रतिक्रिया।
आपकी लिखी रचना सोमवारीय विषय विशेषांक "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 29 जनवरी 2018 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार दी जरूर मेरा अहो भागय मेरी रचना को इस लायक समझा।
जवाब देंहटाएंढेर सा आभार।
वाह्ह्तह्हह....दी, हमेशा की तरह सुंदर संदेश.प्रेषित करती बहुत सारगर्भित रचना दी...👌👌👌
जवाब देंहटाएंआभार प्रिय श्वेता।
जवाब देंहटाएंचहकती आपकी सराहना सदा मन मोह लेती है।
शुभ दिवस।
मनभावन बसंत और गोपियों का हरि को आवाह्न....
जवाब देंहटाएंहरि आओ न....अद्भुत ,शानदार और …लाजवाब
वाहवाह....
आदरनीय कुसुम जी -- बसंत को अध्यात्म से जोडती रचना अनुपम है | कहाँ के बिना बसंत ? उन्हें आह्वान हृदयस्पर्शी है | सस्नेह -- मेरी शुबकामनाएं --
जवाब देंहटाएंवाह ! एक तो ऋतुराज बसंत और उसमें हरि का आगमन! कृष्ण ने तो स्वयं कहा है गीता में कि वृक्षों में मैं पीपल और ऋतुओं में बसंत हूँ । फिर ये मधुर पुकार - "हरि आओ ना"
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनशील रचना है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना 👌
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