निर्झरी मैं
निर्मल सुंदर
क्या है उद्गम मेरा नही जानती
उतंग पहाड़ों का विलाप हूं
या महादेव की जटाओं से अच्युत
कोई जल धार
बस अब मै निर्झरी
गिरती ऊंचाईयों से बन निर्झर
चट्टानों से टकराती
फिर भी गुनगुनाती
कभी नही निश्चल निशब्द
मेरी अनुगूंज विराट तक
चल के गिरती फिर चलती
न रुकती न हारती कभी
गिरना चलना मेरी शान
कभी उदण्ड हो किनारे तोडती
मै निर्झरी
ऐसे पल भी आते
लगता पर्वतों का रुदन थम गया
मै रेत पर पसर तनवंगी सी
अपना अस्तित्व बचाने
स्वयं नैनो से अश्रु बहाती
इधर उधर फैला अपनी बांहे
रेत के बिछौने पर करवट बदलती
फिर नई भोर का इंतजार
जो मुझे फिर नव जीवन दे दे
भर दे मुझे फिर थला थल
मै निर्झरी ।
-कुसुम कोठारी
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १२ फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंउतंग पहाड़ों का विलाप हूं
जवाब देंहटाएंया महादेव की जटाओं से अच्युत
कोई जल धार
बस अब मै निर्झरी
गिरती ऊंचाईयों से बन निर्झर------
वाह कुसुम जी --- नदिया के बहाने उत्तम सृजन और मर्मस्पर्शी भाव !!
सादर शुभकामना --
Is it mahadevi Verma s'?????????
जवाब देंहटाएंBast
जवाब देंहटाएंthanks gym motivaional quotes
जवाब देंहटाएंnice post good information sir
जवाब देंहटाएंBahot Acha Jankari Mila Post Se . Kavita Poem Hindi or
जवाब देंहटाएंMahatma Gandhi Jayanti ki Subh Kamnaye
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