अक्सर जिया है मैंने
अपनी ही अधलिखी कहानियों
और अपूर्ण ख़्वाबों को
सपनों में अश्वमेध रचाकर
कितनी ही बार
अपने को चक्रवर्ती बनते देखा है
रोशनी हमेशा ही
एक क्रूर यंत्रणा रही है
दबे पाँवों आकर
चंद सुखी अहसासों
और मीठे ख़्वाबों को
समेट कर
चील की तरह
पंजों में ले भागती हुई
एक खालीपन
और लुटे पिटे होने का दंश
बहुत देर तक
सालता रहता है
फिर किसी नये भुलावे तक।
-डॉ. प्रभा मुजुमदार
अपनी ही अधलिखी कहानियों
और अपूर्ण ख़्वाबों को
सपनों में अश्वमेध रचाकर
कितनी ही बार
अपने को चक्रवर्ती बनते देखा है
रोशनी हमेशा ही
एक क्रूर यंत्रणा रही है
दबे पाँवों आकर
चंद सुखी अहसासों
और मीठे ख़्वाबों को
समेट कर
चील की तरह
पंजों में ले भागती हुई
एक खालीपन
और लुटे पिटे होने का दंश
बहुत देर तक
सालता रहता है
फिर किसी नये भुलावे तक।
-डॉ. प्रभा मुजुमदार
मर की छलना अप्रतिम।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
nice latest updates Visit our site RNKhabri
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