हर सुबह एक अलग नये सपने सजाता हूँ
शाम तलक उन्हें मैं खुद ही भूल जाता हूँ
ख्वाहिशें हज़ार ले कर रोज़ कमाने जाता हूँ
बेच के ईमान खाली जेबें नही भर पाता हूँ
है मेरा भी कोई अपना ये सब को बताता हूँ
पर हूँ सच में अकेला ये सबसे छुपाता हूँ
मिलेगा मौका हंसने का सोच के गम भुलाता हूँ
मुठ्ठी भर खुशियों को मैं फिर भी तरस जाता हूँ
हर दर पे हूँ भटकता तलाश तो पूरी हूँ करता
पर ढूंढ़ने क्या निकला ये समझ नही पाता हूँ
दिया जीवन खुदा ने तो कुछ मकसद होगा
ये सोच के यारों मैं मर भी नही पाता हूँ
बस थोड़ी है राहें अब जल्द मिलेगी मंजिल
ये सोच कर 'मौन' बस बढ़ता चला जाता हूँ
-अमित मिश्र 'मौन'
जय मां हाटेशवरी....
जवाब देंहटाएंहर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
दिनांक 020/02/2018 को.....
आप की रचना का लिंक होगा.....
पांच लिंकों का आनंद
पर......
आप भी यहां सादर आमंत्रित है.....
दिया जीवन खुदा ने तो कुछ मकसद होगा
जवाब देंहटाएंये सोच के यारों मैं मर भी नही पाता हूँ
इसी उम्मीद में पूरा जीवन जी लेते हैं...
बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति...
वाह!!!
वाह!!बहुत खूब । सच है उम्मीद पर ही जीवन टिका है ।
जवाब देंहटाएंविसंगतियों में झूलता हुआ इंसान आशाओं के सहारे ही अपनी पूरी जिंदगी गुजार देता है । यह कविता बहुत अपनी सी लगी।शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंNice information.Thanks for sharing. To know about homam service Bhagya Suktam Homam In Madurai For more details to know about homam contact : 9345451655
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत खूब । सच है उम्मीद पर ही जीवन टिका है ।
जवाब देंहटाएंVisit Science Notes in hindi