चलो बाँध स्वप्नों की गठरी
रात का हम अवसान करें
नन्हें पंख पसार के नभ में
फिर से एक नई उड़ान भरें
बूँद-बूँद को जोड़े बादल
धरा की प्यास बुझाता है
बंजर आस हरी हो जाये
सूखे बिचड़ों में जान भरें
काट के बंधन पिंजरों के
पलट कटोरे स्वर्ण भरे
उन्मुक्त गगन में छा जाये
कलरव कानन में गान भरें
चोंच में मोती भरे सजाये
अंबर के विस्तृत आँगन में
ध्रुवतारा हम भी बन जाये
मनु जीवन में सम्मान भरें
जीवन की निष्ठुरता से लड़
ऋतुओं की मनमानी से टूटे
चलो बटोरकर तिनकों को
फिर से एक नई उड़ान भरें
-श्वेता सिन्हा
व्वाहहहहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
सादर,,
बहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
हटाएंआपका स्नेह बना रहे।
सादर।
जीवन की निष्ठुरता से लड़
जवाब देंहटाएंऋतुओं की मनमानी से टूटे
चलो बटोरकर तिनकों को
फिर से एक नई उड़ान भरें....
दिन-ब-दिन आपकी लेखनी परिपक्व होती जा रही है और विशिष्ट भी। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया श्वेता जी।
जीवन की निष्ठुरता से लड़
जवाब देंहटाएंऋतुओं की मनमानी से टूटे
चलो बटोरकर तिनकों को
फिर से एक नई उड़ान भरें
वाह प्रिय श्वेता , तुम्हारी पुरानी रचनाओं से इस मंच पर मिलना पुराने दिनों की यादें ताजा करता है | बहुत ही प्यारी आशावाद और सकारात्मकता से भरी रचना | अब अपने ब्लॉग पर भी फिर से रौनक बिखेरो | हार्दिक शुभकामनाएं और स्नेह के साथ |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 02 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएं