शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

बवालों की भीड़ मची है....उर्मिला सिंह ‎

बवाल  के  समन्दर  में  जिन्दगी  बवाल है
महंगी हुई सब्जी घर में बवाल है
जहां देखो वहीं मचा बवाल है
आये  दिन  हड़ताल  ने  मचाया  बवाल  है!
बच्चों को मितव्ययता की सीख दो,
कामवालियाँ पैसे बढ़ाने को मचाती बवाल हैं!
चिल्ला-चिल्ला के बच्चे मचाते  घर में बवाल हैं!
जिन्दगी झल्ला रही  है देख के बवाल
जनता की परेशानियां देखता कौन है
हर छोटी बात पर संसद में नेता मचाते बवाल हैं!
जिन्दगी का सकूँन चैन खो गया आजकल
तर्क करते  दोस्त भी झुंझला के मचाते बवाल हैं!
बढ़ गईं बीमारियाँ जब से मचा देश  में बवाल है !
उर्मिला सिंह  


4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना सोमवार २२जनवरी २०१८ के विशेषांक के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. लाज़वाब रचना
    बहुत बहुत बधाई

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  3. आज की दुनिया में बवाल शब्द सिर्फ शोर-शराबे का प्रतीक नहीं है बल्कि यह हमारे जीवन की जटिलताओं और चुनौतियों को दर्शाता है। हर इंसान किसी न किसी रूप में बवाल से गुजरता है, चाहे वह आर्थिक हो, सामाजिक हो या पारिवारिक। लेकिन इन्हीं परिस्थितियों से हमें धैर्य, सहनशीलता और आत्मनिर्भरता की सीख मिलती है।

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