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रविवार, 14 जनवरी 2018
अलाव ....डॉ. इन्दिरा गुप्ता
जलता हुआ अलाव जीवन का सा भाव ! कभी मद्दिम सा कभी ज्वलंत सा जलते भावों का सा ज्वाल ! चटख चटख कर कभी अंगारा तिक्त भाव कह जाता ! फिर धीरे से मद्दिम होकर अंत काल बुझ जाता ! -डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍
"अलाव" बिषय आधारित रचनाओं का प्रकाशन सोमवार 15 जनवरी 2018 को किया जा रहा है जिसमें आपकी रचना भी सम्मिलित है . आपकी सक्रिय भागीदारी के लिये हम शुक्रगुज़ार हैं. साथ बनाये रखिये. कृपया चर्चा हेतु ब्लॉग "पाँच लिंकों का आनन्द" ( http://halchalwith5links.blogspot.in) अवश्य पर आइयेगा. आप सादर आमंत्रित हैं. सधन्यवाद.
"अलाव" बिषय आधारित रचनाओं का प्रकाशन सोमवार 15 जनवरी 2018 को किया जा रहा है जिसमें आपकी रचना भी सम्मिलित है . आपकी सक्रिय भागीदारी के लिये हम शुक्रगुज़ार हैं. साथ बनाये रखिये.
जवाब देंहटाएंकृपया चर्चा हेतु ब्लॉग "पाँच लिंकों का आनन्द" ( http://halchalwith5links.blogspot.in) अवश्य पर आइयेगा. आप सादर आमंत्रित हैं. सधन्यवाद.
.. वाह!!
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में ढाली गई अलाव की संपूर्ण परिभाषा ..सच कहा जीवन के मानिंद ही जलता बुझता है अलाव .. बधाई आपको इस खुबसूरत कृति हेतु..!
बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंअलाव जला कि तुरंत बुझ गया. लेकिन ज़िन्दगी के बारे में बहुत कुछ अनकहा कह गया. बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भाव चंद शब्दों में..।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना प्रिय इन्दिरा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
वाह बहुत सुंदर आदरणीया दीदी जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम