रविवार, 18 फ़रवरी 2018

जो आये तो तेरी याद आये...अमित मिश्र 'मौन'

नग़मे इश्क़ के कोई गाये तो तेरी याद आये
जिक्र मोहब्बत का जो आये तो तेरी याद आये

यूँ तो हर पेड़ पे डालें हज़ारों है निकली
टूट के कोई पत्ता जो गिर जाये तो तेरी याद आये

कितने फूलों से गुलशन है ये बगिया मेरी
भंवरा इनपे जो कोई मंडराये तो तेरी याद आये

चन्दन सी महक रहे इस बहती पुरवाई में
झोंका हवा का मुझसे टकराये तो तेरी याद आये

शीतल सी धारा बहे अपनी ही मस्ती में यहाँ
मोड़ पे बल खाये जो ये नदिया तो तेरी याद आये

शांत जो ये है सागर कितनी गहराई लिये
शोर करती लहरें जो गोते लगाये तो तेरी याद आये

सुबह का सूरज जो निकला है रौशनी लिये
ये किरणें हर ओर बिखर जाये तो तेरी याद आये

'मौन' बैठा है ये चाँद दामन में सितारे लिये
टूटता कोई तारा जो दिख जाये तो तेरी याद आये

-अमित मिश्र 'मौन' 

5 टिप्‍पणियां:

  1. गजल के अलफांसो में गूंथी सुन्दर रचना
    खासकर यह...
    'मौन' बैठा है ये चाँद दामन में सितारे लिये
    टूटता कोई तारा जो दिख जाये तो तेरी याद आये

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  2. 'मौन' बैठा है ये चाँद दामन में सितारे लिये
    टूटता कोई तारा जो दिख जाये तो तेरी याद आये

    Gazab..... sahi kaha

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  3. क्या बात है, सच कहूँ तो जैसे हर लाइन में कोई पुरानी याद सांस ले रही हो आपकी कविता में। आपकी कविता पढने से दिल अपने आप किसी खोए हुए पल की तरफ भागने लगता है। ऐसा लगा जैसे तारे टूटे नहीं, कोई वादा टूट गया हो। आपने मोहब्बत को महसूस नहीं करवाया, जीवित कर दिया।

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